तीस्ता पर विवाद : क्या है मामला, समझौते पर ममता को क्यों है एतराज?
=================================================
जब मनमोहन सिंह 2011 में बतौर प्रधानमंत्री ढाका गए थे, तब तीस्ता जल
विवाद पर भारत और बांग्लादेश समझौता करने के करीब थे। उस वक्त भी ममता
बनर्जी ढाका जाने वाली थीं लेकिन समझौते पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने ऐन
वक्त पर अपना दौरा रद्द कर दिया। ममता की आपत्ति का असर मोदी के इस दौरे
पर भी दिखा। मोदी-हसीना के बीच बातचीत के एजेंडे में तीस्ता को शामिल ही
नहीं किया गया। ममता और मोदी के इस रुख पर कोलकाता में कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी निशाना साधा। जानिए, क्या है तीस्ता से
जुड़ा पूरा मामला?
कहां से गुजरती है तीस्ता?
तीस्ता नदी हिमालय के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है। यह सिक्किम से
पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश जाती है और बाद में ब्रह्मपुत्र में
मिल जाती है। यह नदी कुल 393 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। इस नदी से
बांग्लादेश की 2 करोड़ और भारत की 1 करोड़ की आबादी का जीवन-यापन जुड़ा
है।
कब से चल रहा है विवाद?
1815 में नेपाल के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तीस्ता नदी के पानी
को लेकर समझौता हुआ। तब राजा ने नदी के बड़े हिस्से पर नियंत्रण
अंग्रेजों को सौंप दिया। बांग्लादेश के आजाद होने के 12 साल बाद 1983 में
दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। पानी का 36% हिस्सा बांग्लादेश और बाकी
भारत के खाते में आया। लेकिन पिछले 18 साल से बांग्लादेश इस पर दोबारा
विचार करने पर अड़ा है।
क्या है समस्या?
दिसंबर से मार्च के बीच इस नदी में पानी का बहाव कम हो जाता है। इस वजह
से बांग्लादेश में मछुआरों और किसानों को कुछ महीनों तक रोजगार के दूसरे
विकल्प तलाशने पड़ते हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि वह
अपने बैराज से तीस्ता का ज्यादा पानी बांग्लादेश को नहीं दे सकती।
2011 में क्यों नहीं हुुआ समझौता?
2011 में दोनों देश नदी विवाद सुलझाने के करीब थे। तब यह तय हुआ था कि
दिसंबर-मार्च के बीच भी दोनों देश नदी के पानी का 50-50% बंटवारा करेंगे।
हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के कारण यह समझौता नहीं हो पाया।
समझौते के विरोध में ममता ने ऐन वक्त पर बांग्लादेश दौरा रद्द कर दिया।
क्या है पश्चिम बंगाल सरकार की दलील?
बांग्लादेश चाहता है कि उसे अपने लालमोनीहार जिले में डालिया बैराज के
लिए भारत से ज्यादा पानी मिले ताकि वह दिसंबर-मार्च के दौरान नहरों के
जरिए खेतों तक पानी पहुंचा सके। लेकिन ममता बनर्जी का कहना है कि दिसंबर
से मार्च के बीच नदी में इतना पानी नहीं होता कि जलपाईगुड़ी के पास
गाजोलडोबा बैराज से 25% से ज्यादा हिस्सा बांग्लादेश को दे सकें। पश्चिम
बंगाल कोलकाता पोर्ट के लिए इस पानी का इस्तेमाल करता है। समस्या बारिश
के दिनों में भी है। अगर पश्चिम बंगाल सरकार पानी नहीं छोड़े तो उत्तरी
बंगाल के तराई वाले हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। अगर पानी छोड़ा
जाए तो बांग्लादेश में जलस्तर बढ़ जाता है। कई गांवों में खेती के लायक
जमीन से मिट्टी कट जाती है। इसी मुद्दे पर नया समझौता अब तक अटका है।
www.psacademy.co.in
=================================================
जब मनमोहन सिंह 2011 में बतौर प्रधानमंत्री ढाका गए थे, तब तीस्ता जल
विवाद पर भारत और बांग्लादेश समझौता करने के करीब थे। उस वक्त भी ममता
बनर्जी ढाका जाने वाली थीं लेकिन समझौते पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने ऐन
वक्त पर अपना दौरा रद्द कर दिया। ममता की आपत्ति का असर मोदी के इस दौरे
पर भी दिखा। मोदी-हसीना के बीच बातचीत के एजेंडे में तीस्ता को शामिल ही
नहीं किया गया। ममता और मोदी के इस रुख पर कोलकाता में कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी निशाना साधा। जानिए, क्या है तीस्ता से
जुड़ा पूरा मामला?
कहां से गुजरती है तीस्ता?
तीस्ता नदी हिमालय के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है। यह सिक्किम से
पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश जाती है और बाद में ब्रह्मपुत्र में
मिल जाती है। यह नदी कुल 393 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। इस नदी से
बांग्लादेश की 2 करोड़ और भारत की 1 करोड़ की आबादी का जीवन-यापन जुड़ा
है।
कब से चल रहा है विवाद?
1815 में नेपाल के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तीस्ता नदी के पानी
को लेकर समझौता हुआ। तब राजा ने नदी के बड़े हिस्से पर नियंत्रण
अंग्रेजों को सौंप दिया। बांग्लादेश के आजाद होने के 12 साल बाद 1983 में
दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। पानी का 36% हिस्सा बांग्लादेश और बाकी
भारत के खाते में आया। लेकिन पिछले 18 साल से बांग्लादेश इस पर दोबारा
विचार करने पर अड़ा है।
क्या है समस्या?
दिसंबर से मार्च के बीच इस नदी में पानी का बहाव कम हो जाता है। इस वजह
से बांग्लादेश में मछुआरों और किसानों को कुछ महीनों तक रोजगार के दूसरे
विकल्प तलाशने पड़ते हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि वह
अपने बैराज से तीस्ता का ज्यादा पानी बांग्लादेश को नहीं दे सकती।
2011 में क्यों नहीं हुुआ समझौता?
2011 में दोनों देश नदी विवाद सुलझाने के करीब थे। तब यह तय हुआ था कि
दिसंबर-मार्च के बीच भी दोनों देश नदी के पानी का 50-50% बंटवारा करेंगे।
हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के कारण यह समझौता नहीं हो पाया।
समझौते के विरोध में ममता ने ऐन वक्त पर बांग्लादेश दौरा रद्द कर दिया।
क्या है पश्चिम बंगाल सरकार की दलील?
बांग्लादेश चाहता है कि उसे अपने लालमोनीहार जिले में डालिया बैराज के
लिए भारत से ज्यादा पानी मिले ताकि वह दिसंबर-मार्च के दौरान नहरों के
जरिए खेतों तक पानी पहुंचा सके। लेकिन ममता बनर्जी का कहना है कि दिसंबर
से मार्च के बीच नदी में इतना पानी नहीं होता कि जलपाईगुड़ी के पास
गाजोलडोबा बैराज से 25% से ज्यादा हिस्सा बांग्लादेश को दे सकें। पश्चिम
बंगाल कोलकाता पोर्ट के लिए इस पानी का इस्तेमाल करता है। समस्या बारिश
के दिनों में भी है। अगर पश्चिम बंगाल सरकार पानी नहीं छोड़े तो उत्तरी
बंगाल के तराई वाले हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। अगर पानी छोड़ा
जाए तो बांग्लादेश में जलस्तर बढ़ जाता है। कई गांवों में खेती के लायक
जमीन से मिट्टी कट जाती है। इसी मुद्दे पर नया समझौता अब तक अटका है।
www.psacademy.co.in
No comments:
Post a Comment